अब्दुल जब्बार गैस पीड़ितों की वो आवाज थी जो एक डॉक्टर और मरीज के रिश्तों के बीच होती है। जब डॉक्टर ही चला गया तो मरीजों का ख्याल कौन रखेगा। भोपाल गैस त्रासदी का दंश जिसने भोगा है उसे तो आज तक डस रहा है, जिसने सुना या देखा उसे भी यह अपनी भयावहता महसूस कराता है। गैस पीड़ितों की इतने बरस तक स्टोरियां कवरेज करने के बाद आज हमें भी इनका दर्द सालता है। जब्बार साहब वो शख्सियत थे जिन्होंने गैस पीड़ितों के लिए इतना कुछ किया है कि उनके बगैर गैस पीड़ितों की स्टोरी अधूरी लगती थी। अखबारों में यदि गैस पीड़ितों की बीट जिंदा है तो उसके लिए जब्बार साहब को सबसे बड़ी शख्सियत कहा जाए तो अतिश्योक्ति न होगी। उनके निधन से वाकई गैस पीड़ितों को गहरा आघात तो लगा ही है और खबरनवीसों ने भी एक बहुत बड़ा वर्जन खोया है।
खामोश हो गई गैस पीड़ितों की आवाज