मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा आज दिनांक 23 नबम्बर 2019 को रवींद्र भवन भोपाल इक़बाल समारोह में शाम-ए-ग़ज़ल का आयोजन सम्पन्न हुआ।
उप सचिव संस्कृति श्रीमति प्रज्ञा अवस्थी के मुख्य आतिथ्य में शाम ए ग़ज़ल की शुरुआत रविन्द्र भवन के खचाखच भरे सभागार में हुई।
उर्दू अकादमी के सचिव और प्रज्ञा अवस्थी ने उस्ताद मोहम्मद हुसैन अहमद हुसैन-जयपुर का स्वागत किया। दोनों ने सभी संगतकारों नफीस अहमद, महेश मलिक, प्रकाश रिझारिया और आरिफ लतीफ़ का भी स्वागत किया।
शुरुआत में संचालन करते हुए समीना अली ने अल्लामा इक़बाल के कलाम और उनके भोपाल से ताल्लुक पर बात की। उन्होंने अल्लामा इक़बाल का शेर पढ़ा,
हे राम के वजूद पे हिन्दोस्तां को नाज
पहले नज़र समझते हैं उसको इमामे हिन्द। इसके बाद मोहम्मद हुसैन अहमद हुसैन ने महफ़िल की शुरुआत अल्लामा इक़बाल की ग़ज़ल से की। ग़ज़ल थी,
कभी ए हकीकते मुन्तजर
नज़र आ लिबासे मजाज़ में।
के हज़ारों सजदे तड़प रहे हैं,
मेरी जिबीने नियाज़ में।
भोपाल के बारे में मोहम्मद हुसैन ने कहा कि भोपाल से हमारा पुराना लंबा रिश्ता है। ये अहले सुखन का शहर है। यहां के लोग शायरी और साहित्य को समझते हैं और कलाकारों को बहुत मोहब्बत देते हैं। इस शहर में आने और साफ सुथरे शहर में रहने का मज़ा ही कुछ और है।
इसके बाद उन्होंने
वाजिद अली शाह का कलाम गाया,
इलाही कोई हवा का झोंका,
दिखा दे चेहरा उड़ा के आंचल।
जो चाहता है वो भी सितमगर,
तो खिड़कियों में लगा के आंचल।
इसके बाद जब उन्होंने उनकी मशहूर ग़ज़ल
पढ़ी तोह श्रोता ने खूब तालियों से उनका स्वागत किया
ग़ज़ल थी
चल मेरे साथ ही चल
ए मेरी जान ए ग़ज़ल
इन समाजों के वंधन से निकल चल